Wednesday, 22 August 2012

बीकानेर

बीकानेर
बीकानेर राजस्थान प्रान्त का एक शहर है। बीकानेर राज्य का पुराना नाम जांगल देश था। इसके उत्तर में कुरुऔर मद्र देश थे, इसलिए महाभारत में जांगल नाम कहीं अकेला और कहीं कुरु और मद्र देशों के साथ जुड़ा हुआ मिलता है। बीकानेर के राजा जंगल देश के स्वामी होने के कारण अब तक "जंगल धर बादशाह' कहलाते हैं। [1]बीकानेर राज्य तथा जोधपुर का उत्तरी भाग जांगल देश था [2]
राव बीका द्वारा १४८५ में इस शहर की स्थापना की गई। ऐसा कहा जाता है कि नेरा नामक व्यक्ति इस संपूर्ण जगह का मालिक था तथा उसने राव बीका को यह जगह इस शर्त पर दी की उसके नाम को नगर के नाम से जोड़ा जाए। इसी कारण इसका नाम बीका+नेर, बीकानेर पड़ा। [1] अक्षय तृतीया के यह दिन आज भी बीकानेर के लोग पतंग उड़ाकर स्मरण करते हैं। बीकानेर का इतिहास अन्य रियासतों की तरह राजाओं का इतिहास है। महाराजा गंगासिंह जी ने नवीन बीकानेर रेल नहर व अन्य आधारभूत व्यवस्थाओं से समृद्ध किया। बीकानेर की भुजिया मिठाई व जिप्सम तथा क्ले आज भी पूरे विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं। यहां सभी धर्मों व जातियों के लोग शांति व सौहार्द्र के साथ रहते हैं यह यहां की दूसरी महत्वपूर्ण विशिष्टता है। यदि इतिहास की बात चल रही हो तो इटली के टैसीटोरी का नाम भी बीकानेर से बहुत प्रेम से जुड़ा हुआ है। बीकानेर शहर के ५ द्वार आज भी आंतरिक नगर की परंपरा से जीवित जुड़े हैं। कोटगेट, जस्सूसरगेट, नत्थूसरगेट, गोगागेट व शीतलागेट इनके नाम हैं। [3]
बीकानेर की भौगोलिक स्तिथि ७३ डिग्री पूर्वी अक्षांस २८.०१ उत्तरी देशंतार पर स्थित है। समुद्र तल से ऊंचाई सामान्य रूप से २४३मीटर अथवा ७९७ फीट है
बीकानेर के प्रमुख समाचार पत्र
१. जनमत पत्रिका
मुख्य लेख : बीकानेर का इतिहासइतिहास
बीकानेर एक अलमस्त शहर है ,अलमस्त इसलिए कि यहाँ के लोग बेफिक्र के साथ अपना जीवन यापन करते है । इसका कारण यह भी है कि बीकानेर के सँस्थापक राव बीकाजी अलमस्त स्वभाव के थे अलमस्त नहीँ होते तो वे जोधपुर राज्य की गद्दी को यो हीँ बात बात मे छोड देते । उस समय तो बेटा बाप को मार कर गद्दी पे बैठ जाता था। जैसा कि इतिहास मे मिलता है यथा राव मालदेव ने अपने पिता राव गाँगा को गढ की खिडकी से नीचे फेंक कर किया था और जोधपुर की सत्ता हथिया ली थी। इसके विरूद्ध बीकाजी ने अपनी इच्छा से जोधपुर की गद्दी छोडी।
इसके पीछे दो कहानियाँ लोक मे प्रचलित है । एक तो यह कि , नापा साँखला जो कि बीकाजी के मामा थे उन्होंने जोधाजी
से कहा कि आपने भले ही सांतळ जी को जोधपुर का उत्तराधिकारी बनाया किंतु बीकाजी को कुछ सैनिक सहायता सहित
सारुँडे का पट्टा दे दीजिये । वह वीर तथा भाग्य का धनी है। वह अपने बूते खुद अपना राज्य स्थापित कर लेगा ।
जोधाजी ने नापा की सलाह मान ली। और पचास सैनिकों सहित पट्टा नापा को दे दिया।
बीकाजी ने यह फैसला राजी खुशी मान लिया। उस समय कांधल जी, रूपा जी, मांडल जी, नथु जी, और नन्दा जी ये पाँच
सरदार जो जोधा के सगे भाई थे साथ ही नापा साँखला ,बेला पडिहार,लाला लखन सिंह बैद, चौथमल कोठारी, नाहर सिंह बच्छावत, विक्रम सिंह पुरोहित, सालू जी राठी आदि कई लोगों ने बीकाजी का साथ दिया।
इन सरदारों के साथ बीकाजी ने बीकानेर की स्थापना की।
सालू जी राठी जोधपुर के ओंसिया गाँव के निवासी थे। वे अपने साथ अपने आराधय देव मरूनायक या मूलनायक की मूर्ति साथ लायें आज भी उनके वंशज साले की होली पे होलिका दहन करते है । साले का अर्थ बहन के भाई के रूप मे न होकर सालू जी के अपभ्रंश के रूप मे होता है
अपने चाचा कांधल से कान मे धीर धीरे बात करने लगे यह देख कर जोधा ने व्यँगय मे कहा “ मालूम होता है कि चाचा-भतीजा किसी नवीन राज्य को विजित करने की योजना बना रहे है’।
इस पर बीका और कांधल ने कहाँ कि यदि आप की कृप्या हो तो यही होगा ।और इसी के साथ चाचा – भतीजा दोनों दरबार से उठ के
चले आये तथा दोनों ने बीकानेर राज्य की स्थापना की । इस संबंध मे एक लोक दोहा भी प्रचलित है
‘ पन्द्रह सौ पैंतालवे ,सुद बैसाख सुमेर थावर बीज थरपियो, बीका बीकानेर ‘ इस प्रकार एक ताने की प्रतिक्रिया से बीकानेर की स्थापना हुई वैसे ये क्षेत्र तब भी निर्जन नहीं था इस क्षेत्र मे जाट जाति के कई गाँव थे
भूगोल
मुख्य लेख : बीकानेर का भूगोल
बीकानेर राज्य के उत्तर में पंजाब का फिरोजपुर जिला, उत्तर-पूर्व में हिसार, उत्तर-पश्चिम में भावलपुर राज्य, दक्षिण में जोधपुर, दक्षिण-पूर्व में जयपुर और दक्षिण-पश्चिम में जैसलमेर राज्य, पूर्व में हिसार तथा लोहारु के परगने तथा पश्चिम में भावलपुर राज्य थे।
वर्तमान बीकानेर जिला
वर्तमान बीकानेर जिला राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित है। यह २७ डिग्री ११ और २९ डिग्री ०३ उत्तर अक्षांश और ७१ डिग्री ५४ और ७४ डिग्री १२ पूर्व देशांतर के मध्य स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल ३२,२०० वर्ग किलोमीटर है। बीकानेर के उत्तर में गंगानगर तथा फिरोजपुर, पश्चिम में जैसलमेर, पूर्व में नागौर एंव दक्षिण में जोधपुर स्थित है।
जलवायु
मुख्य लेख : बीकानेर की जलवायु
यहां की जलवायु सूखी, पंरतु अधिकतर अरोग्यप्रद है। गर्मी में अधिक गर्मी और सर्दी में अधिक सर्दी पडना यहां की विशेषता है। इसी कारण मई, जून और जुलाई मास में यहां लू (गर्म हवा) बहुत जोरों से चलती है, जिससे रेत के टीले उड़-उड़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर बन जाते हैं। उन दिनों सूर्य की धूप इतनी असह्महय हो जाती है कि यहां के निवासी दोपहर को घर से बाहर निकलते हुए भी भय खाते हैं। कभी-कभी गर्मी के बहुत बढ़ने पर आक़ाल मृत्यु भी हो जाती है। बहुधा लोग घरों के नीचे भाग में तहखाने बनवा लेते हैं, जो ठंडे रहते है, और गर्मी की विशेषता होने पर वे उनमें चले जाते हैं। कड़ी भूमि की अपेक्षा रेत शीघ्रता से ठंड़ा हो जाता है। इसलिए गर्मी के दिनों में भी रात के समय यहां ठंडक रहती है। शीतकाल में यहां इतनी सर्दी पड़ती है कि पेड़ और पौधे बहुधा पाले के कारण नष्ट हो जाते है।
बीकानेर में रेगिस्तान की अधिकता होने के कारण कुएँ का बहुत अधिक महत्व है। जहां कहीं कुआँ खोदने की सुविधा हुई अथवा पानी जमा होने का स्थान मिला, आरंभ में वहां पर बस्ती बस गई। यही कारण है कि बीकानेर के अधिकांश स्थानों में नामों के साथ सर जुड़ा हुआ है, जैसे कोडमदेसर, नौरंगदेसर, लूणकरणसर आदि। इससे आशय यही है कि इस स्थान पर कुएं अथवा तालाब हैं। कुएं के महत्व का एक कारण और भी है कि पहले जब भी इस देश पर आक्रमण होता था, तो आक्रमणकारी कुओं के स्थानों पर अपना अधिकार जमाने का सर्व प्रथम प्रयत्न करते थे। यहां के अधिकतर कुएं ३०० या उससे फुट गहरे हैं । इसका जल बहुधा मीठा एंव स्वास्थ्यकर होता है।
वर्षा
जैसलमेर को छोड़कर राजपूताना के अन्य राज्यों की अपेक्षा बीकानेर में सबसे कम वर्षा होती है। वर्षा के आभाव में नहरे कृषि सिंचाई का मुख्य श्रोत है। वर्तमान में कुल २३७१२ हेक्टेयर भूमि की सिंचाई नहरों द्वारा की जाती है।
कृषि
अधिकांश हिस्सा अनुपजाऊ एंव जलविहीन मरुभूमि का एक अंश है। जगह-जगह रेतीले टीलें हैं जो बहुत ऊँचे भी हैं। बीकानेर का दक्षिण-पश्चिम में मगरा नाम की पथरीली भूमि है जहां अच्छी वर्षा हो जाने पर किसी प्रकार पैदावार हो जाती है। उत्तर-पूर्व की भूमि का रंग कुछ पीलापन लिए हुए है तथा उपजाऊ है।
यहां अधिकांश भागों में खरीफ फसल होती है। ये मुख्यत: बाजरामोठ, ज्वार,तिल और रुई है। रबी की फसल अर्थात गेंहु, जौ, सरसो, चना आदि केवल पूर्वी भाग तक ही सीमित है। नहर से सींची जानेवाली भूमि में अब गेंहु, मक्का, रुई, गन्ना इत्यादि पैदा होने लगे है।
खरीफ की फसल यहां प्रमुख गिनी जाती है। बाजरा यहां की मुख्य पैदावार है। यहां के प्रमुख फल तरबूज एवं ककड़ी हैं। यहां तरबूज की अच्छी कि बहुतायत से होती है। अब नहरों के आ जाने के कारण नारंगी, नींबू, अनार, अमरुद, आदि फल भी पैदा होने लगे हैं। शाकों में मूली, गाजर, प्याज आदि सरलता से उत्पन्न किए जाते है।
जंगल
बीकानेर में कोई सधन जंगल नहीं है और जल की कमी के कारण पेड़ भी यहां कम है। साधारण तथा यहां 'खेजड़ा (शमी)' के वृक्ष बहुतायत में हैं। उसकी फलियां, छाल तथा पत्ते चौपाये खाते हैं। नीम, शीशम और पीपल के पेड़ भी यहां मिलते हैं। रेत के टीलों पर बबूल के पेड़ पाए जाते हैं।
थोड़ी सी वर्षा हो जाने पर यहां अच्छी घास हो जाती है। इन घासों में प्रधानत: 'भूरट' नाम की चिपकने वाली घास बहुतायत में उत्पन्न होती है।
पशु-पक्षी
यहां पहाड़ व जंगल न होने के कारण शेर, चीते आदि भयंकर जंतु तो नही पर जरख, नीलगाय आदि प्राय: मिल जाते है। घास अच्छी होती है, जिससे गाय, बैल, भैंस, घोड़े, ऊँट, भेड़, बकरी आदि चौपाया जानवर सब जगह अधिकता से पाले जाते हैं। ऊँट यहां बड़े काम का जानवर है तथा इसे सवारी, बोझा ढोने, जल लाने, हल चलाने आदि में उपयोग किया जाता है। पक्षियों में तीतर, बटेर, बटबड़ , तिलोर , आदि पाए जाते हैं।
धर्म
राज्य में हिंदु एंव जैन धर्म को मानने वाले लोग की संख्या सबसे अधिक है। सिख और इस्लाम धर्म को मानने वाले भी अच्छी संख्या में है। यहां ईसाई एवं पारसी धर्म के अनुयायी बहुत कम हैं।
हिंदुओं में वैष्णवों की संख्या अधिक है। जैन धर्म में श्वेताबर, दिगंबर और थानकवासी (ढूंढिया) आदि भेद हैं, जिनमें थानकवासियों की संख्या अधिक है। मुसलमानों मे सुन्नियों की संख्या अधिक है। मुसलमानों में अधिकांश राजपूतों के वंशज हैं, जो मुसलमान हो गए। उनके यहां अब तक कई हिंदु रीति-रिवाज प्रचलित हैं। इसके अतिरिक्त यहां अलखगिरी नाम का नवीन मत भी प्रचलित है तथा बिसनोई नाम का दूसरा मत भी हिंदुओं में विद्यमान है।
जातियाँ
मुख्य लेख : बीकानेर की जातियां
हिंदुओं में वाल्मिकि, ब्राह्मण, राजपूत, महाजन, कायस्थ, जाट, चारण, भाट, सुनार, दरोगा, दर्जी, लुहार, खाती (बढ़ई), कुम्हार, तेली, माली, नाई, धोबी, गूजर, अहीर, बैरागी, गोंसाई, स्वामी, डाकोत, कलाल, लेखरा, छींपा, सेवक, भगत, भड़भूंजा, रैगर, मोची, चमार आदि कई जातियाँ हैं। ब्रह्मण, महाजन आदि कई जातियों की अनेक उपजातियाँ भी बन गई है, जिनमें परस्पर विवाह संबंध नही होता। आदिवासियों में मीणा, बावरी, थोरी आदि हैं। ये लोग खेती और मजदूरी करते हैं। मुसलमानों में शेख, सैयद, मुगल, पठान, कायमख़ानी, राठ, जोहिया, रंगरेज, भिश्ती और कुंजड़े आदि कई जातियाँ हैं।
यहां के अधिकांश लोग खेती करते हैं। शेष व्यापार, नौकरी, दस्तकारी, मजदूरी अथवा लेन-देन का कार्य करते हैं। पशु पालन यहां का मुख्य पेशा है। परीज़ादे और राढ जाति के मुसलमान इस धंधे में लिप्त है। व्यापार करनेवाली जातियों में प्रधान महाजन हैं, जो दूर-दूर स्थानों में जाकर व्यापार करते हैं और ये वर्ग संपन्न वर्ग भी है। ब्राह्मण विशेषकर पूजा-पाठ तथा पुरोहिताई करते हैं, परंतु कोई-कोई व्यापार, नौकरी तथा खेती भी करते हैं। कुछ महाजन कृषि से भी अपना निर्वाह करते हैं। राजपूतें का मुख्य पेशा सैनिक-सेवा है, किंतु कई खेती भी करते है। bishnoi is also main cast in this area,,rakesh bishnoi
राजनीति
बीकानेर राजनीती के लिहाज से भी अपनी भुमीका निभाता है| राजलस्थान के प्रथम नेता-प्रतिपक्ष जसवन्तसिहजी बीकानेर के ही थे| manoj dudi
संस्कृति
मुख्य लेख : बीकानेर की संस्कृति
पोशाक
शहरों में पुरुषों की पोशाक बहुधा लंबा अंगरखा या कोट, धोती और पगड़ी है। मुसलमान लोग बहुधा पाजामा, कुरता और पगड़ी, साफा या टोपी पहनते हैं। संपन्न व्यक्ति अपनी पगड़ी का विशेष रुप से ध्यान रखते हैं, परंतु धीरे-धीरे अब पगड़ी के स्थान पर साफे या टोपी का प्रचार बढ़ता जा रहा है। ग्रामीण लोग अधिकतर मोटे कपड़े की धोती, बगलबंदी और फेंटा काम में लाते हैं। स्रियो की पोशाक लहंगा, चोली और दुपट्टा है। मुसलमान औरतों की पोशाक चुस्त पाजामा, लम्बा कुरता और दुपट्टा है उनमें से कई तिलक भी पहनती है।
भाषा
यहां के अधिकांश लोगों की भाषा मारवाड़ी है, जो राजपूताने में बोली जानेवाली भाषाओं में मुख्य है। यहां उसके भेद थली, बागड़ी तथा शेखावटी की भाषाएं हैं। उत्तरी भाग के लोग मिश्रित पंजाबी अथवा जाटों की भाषा बोलते हैं। यहां की लिपि नागरी है, जो बहुधा घसीट रुप में लिखी जाती है। राजकीय दफ्तरों तथा कर्यालयों में अंग्रेजी एवं हिन्दी का प्रचार है।
दस्तकारी
भेड़ो की अधिकता के कारण यहां ऊन बहुत होता है, जिसके कबंल, लाईयां आदि ऊनी समान बहुत अच्छे बनते है। यहां के गलीचे एवं दरियां भी प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त हाथी दांत की चूड़ियाँ,लाख की चूड़ियाँ तथा लाख से रंगी हुई लकड़ी के खिलौने तथा पलंग के पाये, सोने-चाँदी के ज़ेवर, ऊँट के चमड़े के बने हुए सुनहरी काम के तरह-तरह के सुन्दर कुप्पे, ऊँटो की काठियां, लाल मिट्टी के बर्त्तन आदि यहां बहुत अच्छे बनाए जाते हैं। बीकानेर शहर में बाहर से आने वाली शक्कर से बहुत सुन्दर और स्वच्छ मिश्री तैयार की जाती है जो दूर-दूर तक भेजी जाती है।
साहित्य की दृष्टि से बीकानेर का प्राचीन राजस्थानी साहित्य ज्यादातर चारण ,संत और जैनों द्वारा लिखा गया था ।
चारण राजा के आश्रित थे तथा डिंगल शैली तथा भाषा मे अपनी बात कहते थे । बीकानेर के संत लोक शैली मे लिखतें थे ।
बीकानेर का लोक साहित्य भी काफी महत्वपूर्ण है ।
राजस्थानी साहित्य के विकास मे बीकनेर के राजाओं का भी योगदान रहा है उनके द्वारा साहित्यकारों को आश्रय़ मिलता रहा था ।
राजपरिवार के कई सदस्यों ने खुद भी साहित्य मे जौहर दिखलायें।
राव बीकाजी ने माधू लाल चारण को खारी गाँव दान मे दिया था ।
बारहठ चौहथ बीकाजी के समकलीन प्रसिद्ध चारण कवि थे ।
इसी प्रकार बीकाने के चारण कवियों ने बिठू सूजो का नाम बडे आदर से लिया जाता है ।
उनका काव्य ‘ राव जैतसी के छंद ‘ डिंगल साहित्य मे उँचा स्थान रखती है ।
बीकानेर के राज रायसिंह ने भी ग्रंथ लिखे थे उनके द्वारा ज्योतिष रतन माला नामक ग्रंथ की राजस्थानी मे टीका लिखी थी ।
रायसिंह के छोटे भाई पृथ्वीराज राठौड राजस्थानी के सिरमौर कवि थे वे अकबर के दरबार मे भी रहे थे वेलि क्रिसन रुक्मणी री नामक रचना लिखी जो राजस्थानी की सर्वकालिक श्रेष्ठतम रचना मानी जाती है ।
बीकानेर के जैन कवि उदयचंद ने बीकानेर गजल [नगर वर्णन को गजल कहा गया है ] रचकर नाम कमाया था। वे महाराजा सुजान सिंह की तारीफ करते थे
उत्सव तथा मेले
मुख्य लेख : बीकानेर के मेले
पर्व एवं त्योहार
यहां हिंदुओं के त्योहारों में शील-सप्तमी, अक्षय तृतीया, रक्षा बंधन, दशहरा, दिवाली और होली मुख्य हैं। राजस्थान के अन्य राज्यों की तरह यहां गनगौर, दशहरा, नवरात्रा, रामनवमी, शिवरात्री, गणेश चतुर्थी आदि पर्व भी हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है। तीज का यहां विशेष महत्व है। गनगौर एवं तीज स्रियों के मुख्य त्योहार हैं। रक्षाबंधन विशेषकर ब्राह्मणों का तथा दशहरा क्षत्रियों का त्योहार है। दशहरे के दिन बड़ी धूम-धाम के साथ महाराजा की सवारी निकलती है। मुसलमानों के मुख्य त्योहार मुहरर्म, ईदुलफितर, ईद उलजुहा, शबेबरात, बारहवफ़ात आदि है। महावीर जयंती एवं परयुशन जैनों द्वारा मनाया जाता है। यहां के सिख देश के अन्य भागों की तरह वैशाखी, गुरु नानक जयंती तथा गुरु गोविंद जयंती उत्साह के साथ मनाते है।
मेले
बीकानेर के सामाजिक जीवन में मेलों का विशेष महत्व है। ज्यादातर मेले किसी धार्मिक स्थान पर लगाए जाते हैं। ये मेले स्थानीय व्यापार, खरीद-बिक्री, आदान-प्रदान के मुख्य केन्द्र हैं। महत्वपूर्ण मेले निम्नलिखित हैं-
कोलायत मेला -
यह मेला प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्लपक्ष के अंतिम दिनों में श्री कोलायत जी में होता है और पूर्णिमा के दिन मुख्य माना जाता है। यहां कपिलेश्वर मुनि के आश्रम होने के कारण इस स्थान का महत्व बढ़ गया है। ग्रामीण लोग काफी संख्या में यहां जुटते है तथा पवित्र झील में स्नान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि कपिल मुनि, जो ब्रह्मा के पुत्र हैं ने अपनी उत्तर-पूर्व की यात्रा के दौरान स्थान के प्राकृतिक सुंदरता के कारण तप के लिए उपर्युक्त समक्षा। मेले की मुख्य विशेषता इसकी दीप-मालिका है। दीपों को आटे से बनाया जाता है जिसमें दीपक जलाकर तालाब में प्रवाह कर दिया है। यहां हर साल लगभग एक लाख तक की भीड़ इकढ्ढा होती है।
मुकम मेला -
मुकम का यह मेला नोखा तहसील में लगता है। यह मेला श्री जंभेश्वर जी की स्मृति में होता है, जिन्हें बिसनाई संप्रदाय का स्थापक माना जाता है। इस मेले की विशेषता यह है कि यहां एक विशाल हवन का आयोजन किया जाता है।
देशनोक मेला -
यह मेला चैत सुदी १-१० तक तथा आश्विन १-१० दिनों तक करणी जी की स्मृति में लगता है। ये एक चारण स्री हैं जिनके विषय में ऐसा माना जाता है कि इनमें दैविय शक्ति विद्यमान थी । देश के विभिन्न हिस्सों से इनका आशीर्वाद लेने के लिए लोगों ताँता लगा रहता है। यहां लगभग ३०,००० हजार लोगों तक की भीड़ इकठ्ठा होती है।
नागिनी जी मेला -
देवी नागिनी जी स्मृति में आयोजित यह मेला भादों के धावी अमावश में होता है। इसमें लगभग १०,००० श्रद्धालुगण आते है जिनमें ब्राह्मणों की संख्या अधिक होती है।
यहां के अन्य महत्वपूर्ण पवाç में तीज मेला, शिवबाड़ी मेला, नरसिंह चर्तुदशी मेला, सुजनदेसर मेला, केनयार मेला, जेठ भुट्टा मेला, कोड़मदेसर मेला, दादाजी का मेला, रीदमालसार मेला, धूणीनाथ का मेला आदि हैं।
राव बीका महाराजा जोधा के चौदह पुत्रों में से एक था। राज्य का मुख्य नगर 'बीकानेर' राज्य के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में कुछ ऊँची भूमि पर समुद्र की सतह से ७३६ फुट की ऊँचाई पर बसा है। कुछ स्थानों से देखने पर यह नगर बहुत भव्य तथा विशाल दिखाई पड़ता है। नहर के चारों ओर शहर पनाह चारदिवारी, जो धेरे में साढ़े चार मील है और पत्थर की बनी है। इसकी चौड़ाई ६ फुट तथा ऊँचाई अधिक से अधिक ३० फुट है। इसमें पाँच दरवाजे हैं, जिनके नाम क्रमश: कोट, जस्सूसर, नत्थूसर, सीतला और गोगा है और आठ खिड़कियाँ भी बनी हैं। शहर पनाह का उत्तरी हिस्सा १९०० ई० में बना है।मुख्य लेख : बीकानेर के दर्शनीय स्थल
चित्र शैलीयह शहर पारंपरिक ढंग से बसा हुआ है। नगर के भीतर बहुत सी भव्य इमारतें हैं, जो बहुधा लाल पत्थरों से बनी है। इन पत्थरों पर खुदाई का काम उत्कृष्ट है।
मुख्य लेख : बीकानेर की चित्र शैली
राजस्थानी चित्रकला की एक प्रभावी शैली का जन्म बीकानेर से हुआ जो राजस्थान का दूसरा बड़ा राज्य था। बीकानेर राजस्थान के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। सुदूर मरुप्रदेश में राठौरवंशी राव जोधा के छठे पुत्र बीका द्वारा सन् १४८८ में बीकानेर की स्थापना की गई। बीकानेर २७ १२' और ३० १२' उत्तरी अक्षंश तथा ७२ १२' व ७५ ४१' पूर्वी देशांतर पर स्थित है। बीकानेर राज्य के उत्तर में वहाबलपुर (पाकिस्तान), दक्षिण-पश्चिम में जैसलमेर, दक्षिण में जोधपुर, दक्षिण-पूर्व में लोहारु व हिसार जिला एवं उत्तर पूर्व में फिरोजपुर जिले से घिरी हुई थी। गजनेर व कोलायत यहाँ की प्रसिद्ध झीलें हैं।
बीकानेर मे शिक्षा
बीकानेर में राजस्‍थान राज्‍य का शिक्षा निदेशालय स्थित है। रजवाडों की एक बिल्डिंग में वेटेरनरी कॉलेज के पास स्थित निदेशालय में सैकड़ो कर्मचारी काम करते हैं। कक्षा एक से बारहवीं तक की परीक्षाओं का संचालन और परीक्षा परिणाम, अध्‍यापकों के स्‍थानान्‍तरण सहित कई प्रकार की गति‍विधियां यहां वृहद् स्‍तर पर चलती रहती है। इसे राज्‍य की शिक्षा व्‍यवस्‍था का कुंभ कहा जा सकता है। शिक्षा विभाग से जुडे कार्मिकों को अपने सेवाकाल में एक बार तो यहां चक्‍कर लगाना पड़ ही जाता है।
महाविद्यालय शिक्षा अकादमिक स्‍तर पर देखा जाए तो दो महाविद्यालय मुख्‍य रूप से बीकानेर में है। एक है महारानी सुदर्शना महाविद्यालय और दूसरा है राजकीय डूंगर महाविद्यालय। करीब पचास साल पुराने दोनों महाविद्यालयों का अपना-अपना इतिहास है। इसके अलावा कई वोकेशनल कोर्सेज और डिग्री कॉलेज भी यहां है। पिछले कुछ सालों से बीकानेर में खुले इंजीनियरिंग कॉलेज ने राष्‍ट्रीय स्‍तर के सेमीनार करवाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका है।
साहित्‍य और विद्या में उल्‍लेखनीय कार्य करने वाले लोग
(Dr.Bhuvanesh Shukla)भरत व्यास Dr. Ishwara Nand Sharma (Saraswat)पंडित नरोत्तम दास स्वामी, सूर्यकरण पारीक, ठाकुर रामसिंह , शम्भु दयाल सकसेना, श्री लाल नथमल जोशी, अगर चंद नाहटा , पंकज मदेरना ,मनोहर शर्मा, छगन मोहता, डॉ: माधोदास व्‍यास, हरीश भादाणीनंदकिशोर आचार्य , यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र,अन्नाराम सुदामा , सांवर दइया, लालचंद भावुक, माल चंद तिवाडी, नीरज दइया, वासु आचार्य , भवानी शंकर व्यास विनोद, तथा लक्ष्मी नाराय़ण रंगा के नाम प्रमुख है
ज्‍योतिषियों का गढ़
बीकानेर ज्‍योतिषियों का गढ़ है। यहां पूर्व राजघराने के राजगुरू गोस्‍वामी परिवार में अनेक विख्‍यात एवं प्रकांड ज्‍येातिषी एवं कर्मकांडी विद्वान हुए। ज्‍योतिष के क्षेत्र में दिवंगत पंडित श्री श्रीगोपालजी गोस्‍वामी का नाम देश-विदेश में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। ज्‍योतिष और हस्‍तरेखा के साथ तंत्र, संस्‍कृत और राजस्‍थानी साहित्‍य के क्षेत्र में भी श्रीगोपालजी अग्रणी विशेषज्ञों में शुमार किए जाते थे। पंडित बाबूलालजी शास्‍त्री के जमाने में बीकानेर में ज्‍योतिष विद्या ने नई ऊंचाइयों को देखा। इसके बाद हर्षा महाराज, अशोक थानवी, मंगलचंद पुरोहित और प्रदीप पणिया जैसे कृष्‍णामूर्ति पद्धति के प्रकाण्‍ड विद्वानों ने दिल्‍ली, कलकत्ता, मुम्‍बई और गुजरात में अपने ज्ञान का लोहा मनवाया। इसके अलावा अच्‍चा महाराज, व्‍योमकेश व्‍यास और लोकनाथ व्‍यास जैसे लोगों ने ज्‍योतिष में एक फक्‍कड़ाना अंदाज रखा। संभ्रांतता से जुडे इस व्‍यवसाय में इन लोगों ने औघड़ की भूमिका का निर्वहन किया है। नई पीढ़ी के ये ज्‍योतिषी अब पुराने पड़ने लगे हैं। अधिक कुण्‍डलियां भी नहीं देखते और नई पीढ़ी में भी अधिक ज्ञान वाले लोगों को एकान्तिक अभाव नजर आता है।
तांत्रिकों का स्‍थान
बीकानेर में तंत्र से जुडे भी कई फिरके हैं। इनमें जैन एवं नाथ संप्रदाय तांत्रिक अपना विशेष प्रभाव रखते हैं। मुस्लिम तंत्र की उपस्थिति की बात की जाए तो यहां पर दो जिन्‍नात हैं। एक मोहल्‍ला चूनगरान में तो दूसरा गोगागेट के पास कहीं। गोगागेट के पास ही नाथ संप्रदाय को दो एक अखाड़े हैं। गंगाशहर और भीनासर में जैन समुदाय का बाहुल्‍य है। ऐसा माना जाता है कि जैन मुनियों को तंत्र का अच्‍छा ज्ञान होता है लेकिन यहां के स्‍थानीय वाशिंदों ने कभी प्रत्‍यक्ष रूप से उन्‍हें तांत्रिक क्रियाएं करते हुए नहीं देखा है।
82. राजसी शहर बीकानेर का एक अद्वितिय कालजयी आकर्षण है।
83. राजस्थान का यह रेगिस्तानी शहर इसके आकर्षणों के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें दुर्ग, मंदिर, और कैमल फेस्टिवल शामिल हैं। ऊँटों के देश के रूप में प्रचलित बीकानेर नें औद्योगिक क्षेत्र में भी एक छाप बनाई है।
84. इसकी बीकानेरी मिठाइयों औऱ नाश्ते के लिए संसार में सुप्रसिद्ध, बीकानेर का प्रगतिशील पर्यटन उद्योग भी राजस्थान की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
85. एक रोमांचक ऊँट की सवारी की आशा करने वाले पर्यटकों के लिए बीकानेर एक प्रमुख केन्द्र भी है, जो सुदूर राजस्थान की उत्तम जीवन शैली में अन्तदृष्टी प्रदान करता है।
86. जूनागढ़ दुर्ग के अन्दर एक संग्रहालय है, जिसमें बहुमूल्य पुरातन वस्तुओं का संग्रह है।
87. लालगढ़ पैलेस महाराजा गंगा सिंह द्वारा बनवाया गया था और बीकानेर शहर से 3 किमी उत्तर में स्थित है।
88. दि राजस्थान टूरिज्म डवलपमेन्ट कॉर्पोरेशन(आर.टी.डी.सी.) ने लालगढ़ पैलेस का एक भाग एक होटल में बदल दिया है।
89. लालगढ़ पैलेस के अन्दर एक पुस्तकालय भी है, जिसमें ब़डी संख्या में संस्कृत पाण्डुलिपियां हैं।
90. गजनेर वन्य जीव अभ्यारण्य बीकानेर शहर से 32 किमी दूर है औऱ जानवरों और पक्षियों की कई प्रजातियों का घर है।
91. भाण्डेश्वर और साण्डेश्वर मंदिर दो भाईयों द्वारा बनवाये गये थे और जैन तीर्थंकर, पार्श्वनाथ जी को समर्पित हैं।
92. कांच का कार्य और सोने के वर्क के चित्र भाण्डेश्वर औऱ साण्डेश्वर मंदिरों के प्रमुख आकर्षण हैं।
93. दि गंगा गोल्डन जुबली म्यूजियम में मिट्टी के बर्तनों, चित्रों, कालीनों, सिक्कों और शस्त्रागारों का एक बड़ा संग्रह है।
94. केमल फेस्टीवल प्रतिवर्ष जनवरी महीने में मनाया जाता है और राजस्थान के डिपार्टमेन्ट ऑफ टूरिज्म, आर्ट एण्ड कल्चर द्वारा आयोजित किया जाता है।
95. प्रसिद्ध बीकानेरी भुजिया और मिठाईयां बीकानेर में खरीददारी के कुछ सबसे अच्छे सामान हैं।

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